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    डॉ. राजगोपाल चिदंबरम, प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत सरकार के भूतपूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव और परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष, का निधन

    प्रकाशित तिथि: जनवरी 6, 2025
    Dr. R. Chidambaram

    डॉ. राजगोपाल चिदंबरम, भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक और प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी, का 4 जनवरी 2025 सुबह 3:20 पर मुंबई में निधन हो गया। भारत की वैज्ञानिक और सामरिक क्षमताओं को मजबूत करने में डॉ. चिदंबरम के अतुलनीय योगदान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उनके दूरदर्शी नेतृत्व को सदैव याद किया जाएगा। इस दुख की घड़ी में उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति परमाणु ऊर्जा विभाग अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता है ।

    डॉ. चिदंबरम ने अपने कार्यकाल में कई प्रतिष्ठित पदों पर अतुलनीए योगदान दिया, जिनमें भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (2001–2018), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक (1990-1993), परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के सचिव, परमाणु ऊर्जा विभाग (1993-2000) शामिल हैं। वह अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के गवर्नर्स बोर्ड के अध्यक्ष (1994–1995) भी रहे।

    डॉ. चिदंबरम ने भारत की परमाणु क्षमताओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1974 में देश के पहले परमाणु परीक्षण ‘स्माइलिंग बुद्धा’ में आवश्यक भूमिका निभाई और 1998 में ऑपरेशन शक्ति परीक्षणों के दौरान परमाणु ऊर्जा विभाग की टीम का नेतृत्व किया। उनके योगदान ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।

    एक विश्व-स्तरीय भौतिक विज्ञानी के रूप में, उच्च दबाव भौतिकी, क्रिस्टलोग्राफी, और मटेरियल साइंस में डॉ. चिदंबरम के शोध ने वैज्ञानिक समुदाय की समझ को बढ़ावा दिया। इन क्षेत्रों में उनके अग्रणी कार्य ने भारत में आधुनिक सामग्री विज्ञान अनुसंधान की नींव रखी।

    1936 में जन्मे, डॉ. चिदंबरम ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई, और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु से शिक्षा प्राप्त की।

    डॉ. चिदंबरम अप्रतिम रूप से दूरदर्शी थे, जो मानते थे कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय विकास को गति दी जा सकती है। उन्होंने ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा, और सामरिक आत्मनिर्भरता जैसे क्षेत्रों में पहल का नेतृत्व किया और कई परियोजनाओं को आगे बढ़ाया, जिन्होंने भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिदृश्य को सुदृढ़ एवं समृद्ध किया। उन्होंने भारत में सुपरकंप्यूटर के स्वदेशी विकास और नेशनल नॉलेज नेटवर्क की अवधारणा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने देश भर में अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों को जोड़ा।

    वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी को राष्ट्रीय विकास में लागू करने के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने ग्रामीण प्रौद्योगिकी कार्य समूह और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसैक्शंज़ और संरक्षा सोसायटी जैसे कार्यक्रमों की स्थापना की और भारत के वैज्ञानिक प्रयासों में ‘सुसंगत तालमेल’ पर जोर दिया।

    उनके असाधारण योगदान के लिए, डॉ. चिदंबरम को 1975 में पद्म श्री और 1999 में पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।उन्हे कई विश्वविद्यालयों ने मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया और वे कई भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के सदस्य थे।

    उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव, डॉ. अजीत कुमार मोहंती ने कहा, “डॉ. चिदंबरम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व थे, जिनके योगदान ने भारत की परमाणु शक्ति और सामरिक आत्मनिर्भरता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनका हमारे बीच न होना वैज्ञानिक समुदाय और राष्ट्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है।”

    डॉ. चिदंबरम को एक अग्रणी, प्रेरणादायक नेता, और असंख्य वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के समर्पित मार्गदर्शक के रूप में याद किया जाएगा। उनके जीवन का कार्य भारत को वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अग्रणी मोर्चे पर ले गया और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।