आपातकालीन प्रबंध वर्ग-पऊवि
भारत सरकार की ‘आपातकालीन प्रबंध योजना’,जिसे कैबिनेट सचिवालय द्वारा पहली बार 1987 में जारी किया गया था, ‘परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE)’ को ‘गृह मंत्रालय (MHA)’ के साथ सार्वजनिक क्षेत्र में किसी भी परमाणु या रेडियोलॉजिकल आपात (NRE) स्थिति के प्रबंधन हेतु केंद्रीय नोडल मंत्रालय/विभाग के रूप में निर्दिष्ट करती है। इसके परिणामस्वरूप विभाग में 1987 में एक “आपातकालीन प्रबंध समूह (CMG)” का गठन किया गया। इसका गठन 1984 के भोपाल गैस त्रासदी और 1986 में चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना की पृष्ठभूमि में किया गया था। तब से भारत में आपदा प्रबंधन में अनेक संरचनात्मक परिवर्तन किए गए हैं। आपातकाल प्रबंध अधिनियम, 2005, पूर्ववर्ती अनुक्रियात्मक पद्धति से एक समावेशी और सक्रिय पद्धति की ओर अग्रसर हुआ, जिसमें, NRE सहित देश में किसी भी आपदा प्रबंधन के लिए अधिक समन्वित एवं अग्र सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया गया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना-2019 (एनडीएमए) में पऊवि को किसी भी एनआरई स्थिति से निपटने के लिए तकनीकी सहायता और विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु प्रमुख विभाग के रूप में नामित किया गया है। सीएमजी-डीएई को देश में किसी भी एनआरई स्थिति के लिए तैयारी, योजना, क्षमता निर्माण और अनुक्रिया सहित आपदा प्रबंधन गतिविधियों के संपूर्ण परिधि के अंतर्गत भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं।
सीएमजी-डीएई किसी भी नाभिकीय या रेडियोलॉजिकल उत्पत्ति की घटना पर अनुक्रिया प्रदान करता है। सूचना प्राप्त होने पर, यह अपनी टीम को रेडियोलॉजिकल मूल्यांकन के लिए घटना स्थल पर भेजता है। सीएमजी क कार्य विभिन्न संसाधन समूहों द्वारा समर्थित होते हैं जो विकिरण मापन और सुरक्षा, विकिरण प्रभावित कर्मियों को चिकित्सा सहायता, रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन, संप्रेषण सहायता, भूकंपीय जानकारी और जनता तक सूचना के प्रसार के क्षेत्रों में सहायता और सहयोग प्रदान करते हैं। सीएमजी-डीएई को अपने कार्य को पूरा करने के लिए विभाग की किसी भी इकाई की विशेषज्ञता और अवसंरचनात्मक सहायता प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त है।
सीएमजी-डीएई, एनआरई का विश्लेषण करने, परामर्श देने और प्रबंधन करने वाले विशेषज्ञों का एक समूह है। सीएमजी-डीएई अपने सदस्यों का चयन एईआरबी और डीएई की अन्य इकाइयों में कार्यरत क्षेत्र विशेषज्ञों में से करता है। परमाणु नियंत्रण और योजना विंग (एनसीपीडब्ल्यू), पऊवि के प्रमुख सीएमजी-डीएई, के पदेन अध्यक्ष होते हैं। सीएमजी की सभी गतिविधियों का समन्वय करने वाले सदस्य-सचिव को सचिव, परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा नामित किया जाता है। निदेशक/सह निदेशक, एचएस एंड ईजी, बीएआरसी सीएमजी के सदस्य होते हैं और विकिरण आपातकालीन अनुक्रिया के पदेन निदेशक (आरईआरडी) के रूप में कार्य करते हैं, जिनके मार्गदर्शन में विकिरण आपातकालीन अनुक्रिया केन्द्र (आरईआरसी) कार्य करते हैं।
सीएमजी-डीएई दो आपातकालीन नियंत्रण कक्षों (ईसीआर) का चौबीसों घंटे संचालन करता है जो देश में किसी भी परमाणु या रेडियोलॉजिकल घटना के लिए ‘राष्ट्रीय चेतावनी बिंदु (एनडब्ल्यूपी)’ के रूप में कार्य करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में किसी भी विकिरण आपात स्थिति से निपटने के लिए देश भर में 25 स्थानों पर 25 आरईआरसी का एक नेटवर्क स्थापित किया गया है। आरईआरसी का उत्तरदायित्व फील्ड रिस्पॉन्स उपलब्ध कराना होता है जिसमें विकिरण निगरानी, रेडियोलॉजिकल मूल्यांकन और निर्णय लेने के लिए सीएमजी-डीएई को तकनीकी जानकारी प्रदान करना तथा प्रथम अनुक्रियाकर्ता एवं स्थानीय अधिकारियों को तकनीकी सलाह प्रदान करना शामिल हैं।
सीएमजी-डीएई ‘परमाणु दुर्घटना की प्रारंभिक अधिसूचना’ और ‘परमाणु दुर्घटना या रेडियोलॉजिकल आपातकाल के मामले में सहायता’ पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) संधियों के तहत ‘सक्षम प्राधिकारी’ के रूप में भी कार्य करता है, जिस पर भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। सीएमजी-डीएई समय-समय पर आईएईए द्वारा आयोजित ConvEx (कन्वेंशन एक्सरसाइज) में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
सीएमजी-डीएई, डीएई की किसी इकाइयों/सुविधाओं में या उसके आसपास उत्पन्न होने वाली किसी भी आपदा जैसी स्थिति (प्राकृतिक या मानव प्रेरित) में डीएई के लिए आपदा प्रबंधन सेल (डीएमसी) की भूमिका निभाता है। जब राज्य/केंद्रीय एजेंसियों के साथ अनुक्रिया/गंभीरता कम करने के कार्यों के समन्वय की आवश्यकता उत्पन्न होती है, तब डीएई-डीएमसी प्रभावित डीएई इकाई के आपदा प्रबंधन सेल को आवश्यक सहायता प्रदान करता है। संयुक्त सचिव (ए एंड ए), डीएई, डीएई-डीएमसी के नोडल अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं।