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    DAE-DST प्रेस विज्ञप्ति मूलभूत भौतिकी में महत्वपूर्ण खोज (ब्रेकथ्रू) पुरस्कार से सम्मानित हुए LHC प्रयोग – भारत ने मनाया उत्सव

    प्रकाशित तिथि: मई 27, 2025
    India Celebrates Breakthrough Prize in Fundamental Physics Awarded to LHC Experiments

    मुंबई/नई दिल्ली, भारत

    सर्न (CERN) के लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) रन-2 से संबंधित आंकड़ों (2015 से 15 जुलाई 2024 तक) पर आधारित प्रकाशनों के सह-लेखकों को 2025 के “मूलभूत भौतिकी में महत्वपूर्ण खोज (ब्रेकथ्रू) पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार एटलस (ATLAS – 5,345 शोधकर्ता), सीएमएस (CMS – 4,550), एलिस (ALICE – 1,869) तथा एलएचसीबी (LHCb – 1,744) नामक चार प्रयोगों को प्रदान किया गया है। तीन मिलियन अमेरिकी डॉलर की पुरस्कार राशि इन प्रयोगों को अनुसंधान छात्रवृत्ति हेतु दी जाएगी, जिससे सदस्य संस्थानों के पीएच.डी. शोधार्थी सर्न में अनुसंधान कार्य हेतु प्रवास कर सकेंगे और अग्रणी विज्ञान प्रयोगों का अनुभव प्राप्त कर अपने देशों में नवीन विशेषज्ञता का योगदान देंगे।

    यह प्रतिष्ठित सम्मान उन सहयोगात्मक एवं परिवर्तनकारी अनुसंधानों को मान्यता देता है, जिन्होंने हिग्स बोसोन, क्वार्क-ग्लूऑन प्लाज़्मा, पदार्थ-विपद्रव्य विषमता तथा स्टैण्डर्ड मॉडल से परे की भौतिकी को समझने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। इन प्रयोगों में विश्वभर के अनेक संस्थानों के वैज्ञानिक दलों ने सामूहिक रूप से कार्य किया है। भारत, LHC कार्यक्रम में एक प्रतिबद्ध एवं सक्रिय भागीदार के रूप में, इस अंतरराष्ट्रीय मान्यता को गौरवपूर्वक स्वीकार करता है और इन प्रयोगों व आधारभूत संरचना में अपने महत्वपूर्ण योगदान का उत्सव मनाता है।

    LHC के बारे में

    सर्न द्वारा संचालित लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर विश्व का सबसे शक्तिशाली कण त्वरक है, जो प्रोटॉन और भारी आयनों के उच्च-ऊर्जा टक्करों द्वारा पदार्थ की सूक्ष्मतम संरचना का अध्ययन करने में सक्षम है।

    भारतीय वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने एलिस (A Large Ion Collider Experiment – ALICE) और सीएमएस (Compact Muon Solenoid – CMS) प्रयोगों में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। भारत के अनेक संस्थानों, विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिकों ने इन प्रयोगों की सफलता में बौद्धिक तथा तकनीकी योगदान दिया है। डिटेक्टर निर्माण से लेकर आंकड़ा विश्लेषण तक, भारतीय अनुसंधान दल प्रयोगों की प्रत्येक अवस्था में प्रारंभ से ही सक्रिय रूप से संलग्न रहे हैं। यह योगदान भारत की वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग में प्रतिबद्धता एवं LHC प्रयोगों में उसकी केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है।

    भारत का सर्न से जुड़ाव 1960 के दशक में प्रारंभ हुआ था जब टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) के वैज्ञानिकों ने पायन, क्यॉन और प्रोटॉन बीम के साथ इमल्शन स्टैक्स को सर्न के प्रोटॉन सिंक्रोट्रॉन पर परीक्षण हेतु दौरा किया था। 1980 के दशक में, भारत ने हार्डवेयर और कोर-सॉफ्टवेयर के विकास में सहयोग दिया, विशेष रूप से LEP के चार प्रमुख प्रयोगों में से एक ‘L3’ के लिए। साथ ही Z-रेखा संरचना (न्यूट्रॉन-प्रोटॉन अनुपात) और नए कणों की खोज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया गया।

    1990 के दशक में सहयोग का विस्तार भारी आयन भौतिकी तक हुआ, जिसमें भारतीय दलों ने एक स्किन्टिलेटर-पैड आधारित फोटॉन मल्टीप्लिसिटी डिटेक्टर विकसित किया। भारतीय वैज्ञानिकों ने CERN-SPS पर WA93 और WA98 प्रयोगों में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे सामूहिक प्रवाह की प्रारंभिक माप और ‘डिसऑरिएंटेड चिरल कंडेन्सेट्स’ की खोज संभव हो सकी।

    1991 में, भारत सरकार (DAE) ने CERN के साथ वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग हेतु एक औपचारिक सहयोग समझौता किया। इस समझौते को 2009 में हुए एक समझौता ज्ञापन (MoU) द्वारा और भी सशक्त किया गया, जिससे त्वरक प्रौद्योगिकी, डिटेक्टर अनुसंधान, संगणना अवसंरचना और मानव संसाधन प्रशिक्षण में सहयोग को विस्तार मिला। यह समझौता संयुक्त अनुसंधान और सर्न की दीर्घकालिक परियोजनाओं में भारतीय सहभागिता को भी सुनिश्चित करता है।

    LHC परियोजना में भारतीय योगदानों के मान्यता स्वरूप, 2002 में भारत को “प्रेक्षक” (Observer) का दर्जा प्राप्त हुआ और 2017 में भारत सर्न का ‘एसोसिएट सदस्य राष्ट्र’ (Associate Member State) बना। भारत ने CERN के LHC कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी निभाई है और इस अंतरराष्ट्रीय मान्यता को स्वीकारते हुए अपनी उपलब्धियों का गर्व से उत्सव मना रहा है।

    भारत और सर्न के दीर्घकालिक वैज्ञानिक सहयोग के प्रतीक रूप में, जून 2004 में भारत ने सर्न को शिव नटराज की 2 मीटर ऊँची प्रतिमा भेंट की। भारतीय सरकार द्वारा शिव के नृत्य की उस प्रतीकात्मक छवि का चयन किया गया जिसे भौतिक विज्ञानी कार्ल सेगन ने सूक्ष्म कणों के ब्रह्मांडीय नृत्य से जोड़ा था, जिसे सर्न के वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। यह प्रतिमा प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक परंपराओं के समन्वय का प्रतीक है। प्रतिमा के पास प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी फ्रिटजॉफ कैपरा का यह उद्धरण अंकित है: “सैकड़ों वर्ष पहले, भारतीय कलाकारों ने कांस्य की नृत्य करते हुए शिव की अद्भुत मूर्तियाँ बनाई थीं। आज के युग में, भौतिकविदों ने उन्नततम प्रौद्योगिकी से ब्रह्मांडीय नृत्य के रूपों को चित्रित किया है। यह रूपक प्राचीन मिथक, धार्मिक कला और आधुनिक भौतिकी को एक सूत्र में बाँधता है।”

    भारत की भागीदारी LHC कार्यक्रम के सभी स्तरों – त्वरक प्रौद्योगिकी से लेकर प्रमुख भौतिक प्रयोगों तक – फैली हुई है, जिसे परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सहायता प्राप्त है। भारत सर्न में संचालित तथा प्रस्तावित विभिन्न प्रयोगों के संचालन और निर्णय-निर्धारण प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदार है। भारतीय वैज्ञानिकों और संस्थानों की भागीदारी सर्न की प्रमुख समितियों जैसे कि अनुसंधान एवं संसाधन बोर्ड (RRB), उपयोगकर्ताओं की सलाहकार समिति (ACCU), तथा वैज्ञानिक परिषद (Scientific Council) में भी सुनिश्चित है।

    भारत में एएलआईसीई सहयोग में वीईसीसी-कोलकाता, एसआईएनपी-कोलकाता, आईओपी-भुवनेश्वर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, आईआईटी-मुंबई, पंजाब विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय (2021 तक), बोस इंस्टीट्यूट, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, एनआईएसईआर-भुवनेश्वर, आईआईटी-इंदौर, कूचबिहार पंचानन बर्मा विश्वविद्यालय, आईआईएसईआर-बेरहामपुर और कश्मीर विश्वविद्यालय शामिल हैं।

    सीएमएस सहयोग में दिल्ली विश्वविद्यालय, भौतिकी संस्थान, आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईएसईआर-पुणे, पंजाब विश्वविद्यालय, यूआईईटी-पंजाब , आईआईटी-भुवनेश्वर, आईआईटी-चेन्नई, बीएआरसी-मुंबई, एनआईएसईआर-भुवनेश्वर, पीएयू-लुधियाना, एसआईएनपी-कोलकाता, टीआईएफआर-मुंबई, आईआईटी-हैदराबाद, आईआईटी-कानपुर, आईआईटी-मंडी, आईआईएसईआर-मोहाली, विश्वभारती विश्वविद्यालय, यूओएच -हैदराबाद, बीआईटी- मेसरा , एमिटी विश्वविद्यालय और बीएन मंडल विश्वविद्यालय- मधेपुरा , बिहार शामिल हैं।

    BARC, मुंबई और RRCAT, इंदौर की भारतीय टीमों ने LHC के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिसमें क्रायोजेनिक्स , सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट और बीम इंस्ट्रूमेंटेशन , कोलिमेटर्स , वैक्यूम चैंबर्स और रेडियो-फ्रीक्वेंसी सिस्टम के डिजाइन और निर्माण के लिए उच्च परिशुद्धता वाले घटक शामिल हैं । इन योगदानों ने ब्रेकथ्रू पुरस्कार द्वारा मान्यता प्राप्त खोजों के लिए आवश्यक स्थिर और उच्च-ऊर्जा टकरावों को सक्षम किया।

    एएलआईसीई में भारतीय टीम ने एएलआईसीई सहयोग में, विशेष रूप से डिटेक्टर डिजाइन और डेटा विश्लेषण के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका निभाई है । भारतीय वैज्ञानिकों ने फोटोन मल्टीप्लिसिटी डिटेक्टर (पीएमडी) और म्यूऑन स्पेक्ट्रोमीटर को डिजाइन और निर्माण किया और उसे कमीशन किया, जो क्वार्क ग्लून प्लाज्मा के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने घटना-दर-घटना उतार-चढ़ाव , अनुनाद उत्पादन , सामूहिक प्रवाह और हेवी फ्लेवर प्रोडक्‍शन पर प्रमुख विश्लेषण का नेतृत्व किया ।

    सीएमएस भारतीय टीम ने ट्रिगर और डेटा अधिग्रहण प्रणालियों को डिजाइन करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, और प्रतिरोधक प्लेट चैंबर (आरपीसी), सिलिकॉन प्रीशॉवर डिटेक्टर और हैड्रॉन आउटर (एचओ) कैलोरीमीटर जैसे महत्वपूर्ण घटक प्रदान किए । टीम ने हिग्स बोसोन खोजों , टॉप-क्वार्क, फ्लेवर भौतिकी में महत्वपूर्ण अध्ययनों का नेतृत्व किया। इलेक्ट्रोवेक माप , सुपरसिमेट्री और अन्य बीएसएम (मानक मॉडल से परे) खोजें, जबकि वैश्विक सहयोग के लिए टियर -2 डेटा संसाधन का समर्थन किया ।

    भारत ने वर्ल्डवाइड एलएचसी कंप्यूटिंग ग्रिड (डब्लूएलसीजी) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है – एक वैश्विक नेटवर्क जो एलएचसी प्रयोगों द्वारा उत्पन्न विशाल डेटा को संसाधित और विश्लेषण करता है। भारतीय टियर-2 केंद्र, विशेष रूप से टीआईएफआर मुंबई और वीईसीसी कोलकाता , कंप्यूटिंग और भंडारण संसाधन प्रदान करने में प्रमुख रहे हैं: डब्ल्यूएलसीजी-इंडिया में 17400 कोर कंप्यूटिंग और 12 पीबी स्टोरेज है, जिसने 15 वर्षों में 17.5 मिलियन से अधिक एएलआईसीई कार्य सहायता की है । भारतीय वैज्ञानिकों ने ग्रिड में उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर और उपकरणों में भी योगदान दिया, जैसे कि ग्रिडव्यू (मॉनीटरन) और शिवा (प्रॉब्‍लम ट्रैकिंग), प्रमुख विकास चरणों के दौरान 1,000 से अधिक व्यक्ति-महीने के प्रयास में योगदान दिया।

    एएलआईसीई और सीएमएस प्रयोगों में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को प्रति वर्ष प्रशिक्षित किया जाता है, जिसमें सीईआरएन में ऑन-साइट कार्य भी शामिल है। उन्हें प्रगत उपकरण, वैज्ञानिक कंप्यूटिंग, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और भौतिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त होता है। एलएचसी रन 2 के दौरान भारत की भागीदारी के कारण एएलआईसीई और सीएमएस डेटा पर आधारित 110 से अधिक पीएचडी थीसिस और सहकर्मी-समीक्षित जर्नल पेपर में 130 से अधिक प्रकाशन हुए हैं । भारतीय वैज्ञानिक भौतिकी विश्लेषण , डिटेक्टर अनुसंधान एवं विकास और मशीन लर्निंग अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण नेतृत्व निभाते हैं ।

    परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्‍यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव डॉ. ए.के. मोहंती ने कहा, “ब्रेकथ्रू प्राइज फाउंडेशन की ओर से यह मान्यता दशकों की वैज्ञानिक दृढ़ता और अंतरराष्ट्रीय एकता को समर्पित है। भारत के शोधकर्ता, छात्र और इंजीनियर इस खोज यात्रा में गौरवमयी भागीदारी रहीं हैं। ”

    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि भारतीय शोधकर्ताओं ने एलएचसी प्रयोगों में बहुत बड़ा योगदान दिया है। टीम को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि “इन प्रयोगों के लिए ब्रेकथ्रू साइंस अवार्ड 2025 भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी योगदान की प्रमुखता और मूलभूत अनुसंधान को आगे बढ़ाने में उनकी भूमिका को स्थापित करता है।”

    भारत अब एएलआईसीई में पी-टाइप सिलिकॉन आधारित फॉरवर्ड कैलोरीमीटर ( FoCal ) डिटेक्टर में योगदान देने के लिए कमर कस रहा है – जो फॉरवर्ड रैपिडिटी पर प्रत्यक्ष फोटॉन और न्यूट्रल पियोन के सटीक माप को सक्षम करेगा , जिससे प्रोटॉन और नाभिक की संरचना को जानने के लिए नए मार्ग प्रशस्‍त होंगे। भारतीय टीम चार सबडिटेक्टर घटकों, अर्थात् आउटर ट्रैकर (ओटी), गैस इलेक्ट्रॉन मल्टीप्लायर (जीईएम), हाई ग्रैन्युलर कैलोरीमीटर (एचजीसीएएल) और ट्रिगर सिस्टम में सीएमएस चरण-2 अपग्रेड में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है । ये अपग्रेड किए गए डिटेक्टर उच्च-चमकदार एलएचसी (एचएल-एलएचसी) प्रयोगात्मक संचालन स्थितियों के लिए आवश्यक हैं, जिसका उद्देश्य विशुद्ध भौतिकी परिणाम प्राप्त करना और मानक मॉडल से परे भौतिकी की तलाश करना है।

    ब्रेकथ्रू साइंस अवार्ड 2025 एक साझा सम्मान है – जो न केवल एएलआईसीई और सीएमएस के सहयोग का जश्न मनाता है, बल्कि समर्पित व्यक्तियों और दूरदर्शी सहायता प्रणालियों द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान की भावना का भी जश्न मनाता है। जैसे-जैसे एएलआईसीई और सीएमएस एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, भारत एक योगदानकर्ता और लाभार्थी दोनों के रूप में गर्व से खड़ा है – ऐसी खोजों को बढ़ावा दे रहा है जो ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को हमेशा के लिए नया रूप दे सकती हैं।

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